इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए रामायण के पात्र ‘भरत’ का जिक्र किया है. हाई कोर्ट ने बड़े भाई पर आपराधिक केस दर्ज करने वाले छोटे भाई की तुलना ‘कलयुगी भरत’ से की है. कोर्ट ने दो भाइयों के बीच रुपये के सिविल विवाद पर दाखिल आपराधिक केस की कार्यवाही को रद्द करते हुए ये टिप्पणी की है. आइए जानते हैं पूरा मामला…
रामायण के अनुसार, भगवान राम के वनवास जाने के बाद उनके छोटे भाई भरत ने चित्रकूट जाकर उनसे अयोध्या वापस आने का आग्रह किया था. लेकिन जब प्रभु राम नहीं मानें तो भरत उनकी चरण पादुका लेकर अयोध्या आ गए और 14 साल तक उसी को सिंहासन पर रखकर शासन किया. ये कथा भाई के प्रति भाई के अटूट प्रेम को दर्शाती है. अब इन्हीं भरत को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में याद करते हुए बड़ी टिप्पणी की है.
दरअसल, हाई कोर्ट ने कानपुर से जुड़े एक मामले में दो भाइयों के बीच पैसों के विवाद को लेकर सिविल विवाद पर अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट ने पिता की मौत के बाद 2 लाख 20 हजार रुपये के लिए दो भाइयों के झगड़े को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और कहा कि हम भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत के बलिदान को सदैव याद रखते हैं, लेकिन यहां बड़े भाई के प्रति छोटे भाई के व्यवहार ने उसे ‘कलयुगी भरत’ बना दिया.
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दो भाइयों के बीच पिता के पैसे को लेकर विवाद
कोर्ट ने कहा कि बड़े भाई ने पिता के संयुक्त खाते से पैसे निकाले. कोर्ट ने समझौते का प्रयास किया लेकिन छोटे भाई की जिद के चलते नतीजा नहीं निकल सका. हालांकि रुपये का विवाद सिविल प्रकृति का है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से छोटा भाई जो वकील है उसने अपने बड़े भाई को सिर्फ परेशान करने के लिए इसको आपराधिक कार्रवाई में तब्दील कर दिया.
कोर्ट ने बड़े भाई संजीव चड्ढा (याची) के खिलाफ सीजेएम कानपुर नगर में विचाराधीन आपराधिक केस कार्रवाई को रद्द कर दिया और शिकायतकर्ता (छोटे भाई) राजीव चड्ढा पर 25 हजार रुपये हर्जाना लगाया है और चार हफ्ते में यह राशि याची को देने का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने संजीव चड्ढा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.
मामले के मुताबिक, याचिकाकर्ता संजीव चड्ढा ने कानपुर नगर के किदवई नगर थाने में दर्ज आईपीसी की धारा 406 के तहत मामले में 28 जनवरी 2019 को जारी चार्जशीट, साथ ही 2019 में दर्ज दूसरे आपराधिक मामले में 8 फरवरी 2019 को पारित सम्मन के संज्ञान और आदेश को रद्द करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. ये मामला कानपुर नगर के एसीएमएम कोर्ट नंबर की कोर्ट के समक्ष लंबित है. याचिका में आपराधिक न्यास भंग के आरोप में दाखिल पुलिस चार्जशीट व सम्मन आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी.
पिता की मौत के बाद बड़े भाई ने संयुक्त बैंक खाते से 2.20 लाख निकाल लिया और पिता की वसीयत भी करा ली, जिसमें छोटे भाई को लाभ नहीं मिलना था. दबाव बनाने के लिए छोटे भाई ने बड़े भाई के खिलाफ कानपुर नगर के किदवई नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई. आरोप लगाया कि पैसे निकाल कर भाई ने कपट व न्यास भंग किया है.
कोर्ट ने केस रद्द किया
पुलिस ने केवल धारा 406 में चार्जशीट दाखिल की जिसपर संज्ञान लेकर कोर्ट ने सम्मन जारी किया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भाइयों में समझौते के लिए कई तारीखें भी लगाई लेकिन दोनों भाइयों के बीच सहमति नहीं बनी. कोर्ट ने कहा कि कपट व फर्जी वसीयत के आरोप में चार्जशीट दाखिल नहीं की गई. शिकायतकर्ता ने परेशान करने व दबाव डालने के लिए सिविल विवाद को आपराधिक विवाद में तब्दील कर लिया और वसीयत को अभी तक चुनौती नहीं दी है.
कोर्ट ने अपने फैसले ने कहा कि आपराधिक न्यास भंग के तत्व मौजूद नहीं है इसलिए कोई केस नहीं बनता और पूरी केस कार्यवाही रद्द करते हुए याची संजीव चड्ढा की याचिका को मंजूर कर लिया.
यही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश के अंत में कहा कि कोर्ट इस निर्णय को इस टिप्पणी के साथ समाप्त करना उचित समझता है कि जहां हम भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत के बलिदान को सदैव याद रखते है लेकिन इस मामले में शिकायतकर्ता को अपने बड़े भाई के प्रति अपने आचरण के लिए ‘कलयुगी भरत’ कहा जा सकता है.
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